लाभ का पद – office of profit

Sandarbha Desk
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली में सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को राष्ट्रपति द्वारा अयोग्य करार दे दिया गया।
चुनाव आयोग द्वारा ‘लाभ के पद’ के उल्लंघन के मामले में राष्ट्रपति से सदस्यता रद्द करने की सिफारिश किये जाने के पश्चात् राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा यह निर्णय लिया गया।

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महत्त्वपूर्ण बिंदु
उक्त संदर्भ में राष्ट्रपति से मंज़ूरी मिलने के बाद केंद्र सरकार द्वारा एक अधिसूचना जारी की गई है। इस अधिसूचना के अनुसार, किसी भी विधायक द्वारा सरकार में ऐसे ‘लाभ के पद’ को हासिल नहीं किया जा सकता है जिसमें भत्ते या अन्य शक्तियाँ मिलती हैं।
इसके लिये सबसे पहले विधानसभा से कानून पास किया जाता है, लेकिन दिल्ली सरकार के सम्बन्ध में ऐसा प्रबंध किया गया है कि यह बिना एलजी की मज़ूरी के ऐसा कोई भी कानून पास नहीं कर सकती है।
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा इन विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था, जो कि एक लाभ का पद है।
राष्ट्रपति द्वारा इन विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के बाद इन 20 विधानसभा क्षेत्रों में पुन: उप-चुनाव कराए जाएंगे।

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दिल्ली विधानसभा की स्थिति

दिल्ली विधानसभा में कुल 70 सीटें हैं, जिनमें से आम आदमी पार्टी के 66 विधायक थे। इस प्रकार 20 विधायकों की सदस्यता रद्द होने के बाद भी आम आदमी पार्टी के पास 40 विधायक रहेंगे जो कि सामान्य बहुमत से अधिक है। स्पष्ट रूप से इससे आम आदमी पार्टी की सत्ता को कोई नुकसान नहीं होगा।

‘लाभ का पद’ क्या है?
भारत के संविधान में अनुच्छेद 102(1)(a) के अंतर्गत संसद सदस्यों के लिये तथा अनुच्छेद 191(1)(a) के तहत राज्य विधानसभा के सदस्यों के लिये ऐसे किसी भी लाभ के पद को धारण करने का निषेध किया गया है जिससे उस पद के धारण करने वाले को किसी भी प्रकार का वित्तीय लाभ मिलता हो।
भारतीय संविधान के अनुछेद 191(1)(a) के अनुसार, अगर कोई विधायक किसी लाभ के पद पर आसीन पाया जाता है तो विधानसभा में उसकी सदस्यता को अयोग्य करार दिया जा सकता है।

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इसका क्या महत्त्व है?

  • यह अवधारणा संसद व राज्य विधानसभा के सदस्यों की स्वतंत्रता को अछूता बनाए रखती है।
  • यह विधायिका को कार्यपालिका से किसी अनुग्रह या लाभ प्राप्त करने से रोकती है।
  • यह विधायी कार्यों व किसी भिन्न पद के कर्त्तव्यों में होने वाले टकराव को रोकती है।

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इस संबंध में न्यायालय भूमिका

  • चूँकि लाभ के पद के संदर्भ में भारत में कोई स्थापित प्रक्रिया मौजूद नहीं है। अत: ऐसे में न्यायालय की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
  • गोविन्द बसु बनाम संकरी प्रसाद गोशाल मामले में गठित संविधान पीठ ने लाभ के पद के संदर्भ में कई कारक निर्धारित किये हैं, जैसे- नियुक्तिकर्त्ता, पारितोषिक या लाभ निर्धारित करने वाला प्राधिकारी, पारितोषिक के स्रोत आदि।
  • अशोक भट्टाचार्य बनाम अजोय बिस्वास मामले में न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा था कि कोई व्यक्ति लाभ के पद पर है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिये प्रत्येक मामले को उपयुक्त नियमों और अनुच्छेदों को ध्यान में रखकर ही निर्णय किया जाना चाहिये।
  • वस्तुतः लाभ के पद के संदर्भ में न्यायालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। फिर भी इस संदर्भ में एक सुस्पष्ट नियम का अभाव देखा गया है।
  • विधि विशेषज्ञों के मुताबिक, संविधान में ये धारा रखने का उद्देश्य विधानसभा को किसी भी तरह के सरकारी दबाव से मुक्त रखना था। क्योंकि अगर लाभ के पदों पर नियुक्त व्यक्ति विधानसभा का भी सदस्य होगा तो इससे निर्णयों के प्रभावित होने का अंदेशा बना रहता है।

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