Habitat 3 Conference and the New Urban Agenda

Sandarbha Desk
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What was the Habitat 3 Conference about?

  • More than 30,000 mayors, ministers, policymakers and urbanists gathered in the city of Quito, the capital of Ecuador, for the third United Nations Conference on Housing and sustainable urban Development.
  • It is better known as Habitat III conference (Habitat 3 Conference) and was a four-day summit that began on October 17, 2016.
  • The Habitat Conference takes place after every 20 years and was organised this year to develop a sustainable plan for a rapidly urbanising world.
  • Its previous editions were held in Vancouver (1976) and in Istanbul (1996).
  • The UN has called the Habitat 3 Conference, the third in a series that began in 1976, to reinvigorate the global political commitment to the sustainable development of towns, cities, and other human settlements, both rural and urban.
  • The product of that reinvigoration, along with pledges and new obligations, is being referred to as the New Urban Agenda.
  • At the foundation of the Habitat 3 Conference was the New Urban Agenda, a declaration of intent to make cities more livable.
  • This gathering is arguably more important now than ever, with 2.5 billion more people expected to pack into cities by 2050 and facing the associated challenges to housing, economic equality, infrastructure and environment.

The New Urban Agenda

  • It lays the groundwork for policies and initiatives that will shape cities over the next 20 years. Or in other words, it sets the global vision of sustainable urbanization for the next 20 years.
  • Its preparation lasted two years and involved discussions with various stakeholders, including local governments, civil society groups, and urban scholars and practitioners.
  • It is not legally binding.
  • It is not merely a list of targets to be achieved. But it lists 175 commitments and principles that reflect an ambitious vision in which cities drive sustainable development around the world and where ” all persons are able to enjoy equal rights and opportunities”.
  • It calls for sustainable consumption to address climate change.
  • It pushes for safer and more efficient public transit systems.
  • It commits to end extreme poverty and discrimination against underserved groups including women, children and refugees.
  • It places emphasis on international cooperation to ensure the safety of migrants, and on creating policies that ensure adequate housing and standards of living for all.
  • At the end of the summit, the heads of the 193 member states signed and adopted the agenda.
  • The New Urban Agenda has come at an interesting point. The UN General Assembly in 2015 had adopted the 2030 Agenda for Sustainable Development with 17 Sustainable Development Goals (SDGs).
  • Goal 11 of SDGs on Sustainable Cities and Communities aims to “make cities and human settlements inclusive, safe, resilient and sustainable”. Expectedly, sustainability is at the core of the “New Urban Agenda”.

India and the New Urban Agenda

  • India’s role in framing the “New Urban Agenda” has been limited.
  • It wanted provisions supporting refugees and migrants circumscribed by a proviso stating “where applicable as permitted by laws of the land”.
  • India also preferred a more generic commitment on the right to housing instead of one that denounced discrimination and forced evictions.
  • India sought restrictions on provisions that increased local government autonomy over taxes.
  • This raises concerns about India’s seriousness in empowering cities and their inhabitants.
  • Though India is aggressively pursuing an urban-centric development agenda, its priorities do not seem to fit well with those of the New Urban Agenda.
  • India’s current urban policy framework is not centred on an approach that provides “all inhabitants” a “right to the city”.
  • While “smart cities” form the lynchpin of India’s urban agenda, it only makes a fleeting appearance in the New Urban Agenda. Equity, inclusivity and sustainability are instead the recurring themes.
  • The divergence in priorities hence raises questions about the suitability of India’s current urban development approach.

Way Ahead

  • This gathering will not at once solve all problems related to urbanisation. But, it can be hoped, that it will help cities around the world to better adjust to the booming urbanisation.
  • Since the New Urban Agenda is a non-binding document without concrete mechanisms for implementation, its ability to effect change is limited.
  • However, instead of dismissing it as hollow proclamations, India should consider whether it can harness some of its main ideas.
  • For example, Habitat 3 proceedings also include a bunch of policy papers on topics such as urban governance, municipal finance, and urban spatial strategies.
  • As decision- making processes in Indian cities continue to be driven by proceduralism or ad-hocism, it is worthwhile to explore alternative strategies and processes.
  • At a time when India has grand visions for its cities, even while they struggle to meet the basic needs of its inhabitants, the New Urban Agenda offers a normative framework for guiding India’s urban future.

तृतीय हैबिटैट सम्मेलन (Habitat 3 Conference) एवं नवीन नगरीय कार्यसूची

तृतीय हैबिटैट सम्मेलन (Habitat 3 Conference) किसलिए था ?

  • आवास एवं टिकाऊ शहरी विकास पर संयुक्त राष्ट्र के तीसरे सम्मेंलन में 30,000 से भी अधिक  महापौरों, मंत्रियो, नीतिनिर्माताओं तथा शहरी विचारधारा के लोग इक्वेडोर की राजधानी क्यूटो में इक्कठे हुए ।
  • इसे HABITAT CONFERENCE III (Habitat 3 Conference) के नाम से जाना जाता है। यह एक चार दिवसीय सम्मेलन था, जो 17 अक्टूबर 2016 को प्रारम्भ हुआ था।
  • हैबिटैट सम्मलेन प्रत्येक 20 वर्षों के पश्चात् आयोजित किया जाता है।
  • इस वर्ष आयोजित सम्मेलन तीव्रता से बढ़ते हुए नगरीकरण को टिकाऊ बनाने को लेकर हुआ ।
  • इसकेपहले सम्मलेन वोंकोउवेर (1976) तथा इस्तांबुल(1996) में आयोजित किये गए थे ।
  • संयुक्त राष्ट्र ने तृतीय हैबिटैट सम्मेलन (Habitat 3 Conference) को कस्बों, शहरों, और अन्य मानव बस्तियों, ग्रामीण और शहरी दोनों के सतत विकास के लिए वैश्विक राजनीतिक प्रतिबद्धता को पुनर्जीवित करने के लिए आयोजित किया।
  • नवशक्ति संचार के उत्पादो, प्रतिज्ञाओं और नए दायित्वों के साथ, नए शहरी एजेंडा के रूप में स्थापित किया जा रहा है।
  • नया शहरी एजेंडा तृतीय हैबिटैट सम्मेलन का आधार था, जिसके अंतर्गत शहरो को और अच्छे से रहने योग्य बनाने के इरादे की उदघोषणा थी।
  • यह सभा पहले की अपेक्षा इस बार सबसे महत्वपूर्ण है, 2.5 अरब से अधिक लोगों को 2050 तक शहरों में पैक होकर आवास, आर्थिक समानता, बुनियादी ढांचे और पर्यावरण से जुडी चुनौतियों का सामना करना होगा ।

नवीन शहरी एजेंडा

  • यह उन नीतियों को आधार देता है जो कि अगले 20 वर्षों में शहरों को बेहतर आकार देगी या अन्य शब्दो में यह अगले 20 वर्षो में सुदृढ़ शहरी करण के लिए एक वैश्विक दृष्टिकोण स्थापित करता है।
  • इसकी तैयारी दो वर्षों तक चली और इसमें शामिल विभिन्न हितधारकों सहित स्थानीय सरकारों, नागरिक समाज समूहों, शहरी विद्वानों और चिकित्सकों से विचार-विमर्श किये गए।
  • यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है ।
  • यह केवल लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक एजेंडा नहीं है। लेकिन यह 175 प्रतिबद्धताओं और सिद्धांतो को सूचीबद्ध करता है जोकि एक महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण स्थापित कर उन शहरो की सतत विकास को बढ़ावा देता है जिसमें, “सभी व्यक्ति समान अधिकार और अवसर का आनंद लेने में सक्षम हो” ।
  • जलवायु परिवर्तन के लिये ये एक सतत उपभोग की बात करता है।
  • यह एक सुरक्षित एवं अधिक दक्षतापूर्ण सार्वजानिक परिवर्तन की और दबाव बनाता है।
  • यह अत्यधिक गरीबी एवं महिलाओं, बच्चो तथा शरणार्थियों पर अत्याचार की समाप्ति के लिये प्रतिबद्ध है।
  • यह प्रवासियो की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये, पर्याप्त आवास और जीवन स्तर के लिये नीतियों का निर्माण कर रहा है।
  • इस सम्मलेन के समापन में 193 राष्ट्रों के प्रमुख ने इस एजेंडे पर हस्ताक्षर कर अपना लिया।
  • 2015 में संयुक्त राष्ट्र के साधारण सभा ने 2030 कार्यसूची को अपना लिया था जिसमे 17 सतत विकास लक्ष्यो के साथ सतत विकास की बात कही गयी ।
  • सतत विकास लक्ष्य के 11वें लक्ष्य जो सुदृढ़ शहरो और समुदायों पर थे, उनका लक्ष्य  “शहरों और मानव बस्तियों को समावेशी, सुरक्षित, लचीला और स्थायी बनाना” था।
  • उम्मीद के मुताबिक, स्थिरता “नई शहरी कार्यसूची” के मूल में है।

भारत और नवीन नगरीय कार्यसूची

  • “नई शहरी एजेंडा” तैयार करने में भारत की भूमिका सीमित रही है ।
  • भारत शरणार्थियों और विस्थापितों के समर्थन के लिये एक प्रावधान चाहता था जहां अवेदनकारी को देश में लागू कानून के रूप के द्वारा अनुमति दिए जाये।
  • भारत ने भेदभाव और मजबूरत: निष्कासन पर रोक के बजाये आवासीय अधिकार पर सामान्य प्रतिबद्धता को प्राथमिकता दी।
  • भारत ने उन सभी प्रावधानों पर रोक की मांग की जो करो पर स्थानीय सरकारों की स्वायत्ता बढ़ाते हो।
  • यह शहरों और उनके निवासियों को सशक्त बनाने में भारत की गंभीरता को लेकर चिंताओं को बढ़ाती है।
  • हालांकि भारत आक्रामक तरीके से एक शहरी केंद्रित विकास के एजेंडे का पीछा कर रहा है, इसकी प्राथमिकताये नई शहरी एजेंडा के साथ अच्छी तरह से फिट नहीं लगती।
  • भारत की वर्तमान नगरो का नीतिगत ढांचा उस दृष्टिकोण पर केंद्रित नहीं है जो सभी निवासियों को एक शहर के अधिकार प्रदान करता हो।
  • वहीँ भारत का शहरी एजेंडा-”स्मार्ट सिटी” नए शहरी एजेंडा में एक क्षणभंगुर उपस्थिति ही रखता है ।
  • प्राथमिकताओं में विचलन से भारत की वर्तमान नगरीय विकास कार्यक्रम के अनुकूलन को लेकर प्रश्नों को जन्म देती है ।

अगला कदम

  • नगरीय करण से जुडी समस्यायों का एक बार में समाधान नहीं हो सकता है लेकिन ये उम्मीद रह सकती है कि यह विश्व के कोनो- कोनो में स्थित शहरो मे तेज़ी से हो रहे नगरियकरण को समायोजित करने में सहायक होगा।
  • चूंकि नए शहरी एजेंडा एक गैर बाध्यकारी दस्तावेज है, ठोस तंत्र के बिना लागू करना इसके किसी बदलाव लाने की क्षमता को सीमित करता  है।
  • हालांकि, खोखले घोषणाओं के रूप में इसे नकारने की बजाय भारत को विचार करना चाहिए कि क्या हम इसके मुख्य विचारों में से कुछ का अपने लिए दोहन कर सकते हैं।
  • उदाहरण के लिए, हैबिटेट 3 की कार्यवाही भी नगरीय प्रशासन, नगर निगम के वित्त और शहरी स्थानिक रणनीतियों जैसे विषयों पर नीति कागजात को शामिल करता है ।
  • जब भारत का अपने शहरों के लिए एक भव्य दृष्टिकोण है, जब वे उसके निवासियों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्षरत है ऐसे में नवीन शहरी एजेंडा भारत के नगरीय भविष्य के मार्गदर्शन के लिए एक मानक ढांचा प्रदान करता है।

 

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